पूज्य श्री प्रेम जी महाराज
”पूज्य श्री प्रेम जी महाराज पूर्ण संत“ परम पूज्य श्री प्रेम जी महाराज पूर्ण संत थे। उनका जन्म 2 अक्तूबर सन् 1920 को झंग में हूआ था, जो अब पाकिस्तान में है । आप आठ भाई बहनों में चैथे भाई थे । आपके पिता श्री जयराम दास जी एक बहुत जाने माने वकील थे । वे गायत्री मंत्र का जाप भावना सहित प्रतिदिन करते थे और सूर्य की उपासना करते थे । वे वेदों का स्वाध्याय बड़ी रुची से करते थे । वे अपने पुत्र प्रेम को बचपन से ही अपने साथ आर्य समाज सत्संग में ले जाया करते थे ।
आपकी माता लाजवंती जी बहुत ऊँचे धार्मीक विचारों वाली देवी थी । वे रोजाना गीता का पाठ किया करती थी । पिता जी के प्रभाव से श्री प्रेम जी महाराज में वैदिक ज्ञान जागृत हुआ था और माता जीे प्रभाव से गीता ज्ञान उनमें उमड़ आया था । श्री प्रेम जी महाराज श्रीमद्भगवद् गीता का पाठ नियमपूर्वक रोजाना किया करते थे और किये पाठ का चिंतन करते थे । पूज्य माता लाजवंती जी ‘सुचमनि साहिब’ का पाठ किया करती थी और रोजाना गुरुद्वारा जाया करती थी । मां के प्रभाव से बचपन में श्री प्रेम जी माहाराज गुरुद्वारा जाते थे । बड़ी भावना से श्री गुरवाणी के शलोक उनके दिल और दिमाग में घर कर गये थे ।
”जिस जन होय आप कृपाल-नानक सतगुरु सदा दयाल” । हे नानक! थ्जस दास पर परमात्मा आप कृपालु होता है उस पर सतगुरु सदा दयाल होता है । श्री प्रेम जी महाराज ने देवद्वार से मांग की:- ”करी कृपा प्रभ दीन दयाला, तेरे सन्तन की मन होई रवाला”।
हे दीनों पर दया करने वाले प्रभु! मुझ पर अपनी अपार कृपा करो कि मेरा मन आपके सन्त जनों की धूल बना रहे । श्री प्रेम जी माहाराज देवद्वार पर पुकार सुनकर परम पूज्य गुरुदेव श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज उनके पास लायलपुर गये और उन्हें राम नाम दीक्षा दी । श्री गुरु कृपा और श्री राम कृपा से श्री प्रेम जी माहाराज बहुत ऊँची हस्ति के पूर्ण संत बन गये । श्री स्वामी जी महाराज ने फरमाया था जिसका वर्णण प्रवचन पीयूष ग्रंथ पृष्ठ 241 पर दर्ज है कि ”प्रेमनाथ जो प्रार्थना करते हैं वह पूर्ण हो जाती है । यदि प्रार्थना उचित नहीं है । इनको ‘हां’ ‘ना’ में उत्तर आते हैं” ।
श्री प्रेम जी माहाराज ने जाप करके राम नाम को अपने रोम रोम में रमा लिया था जिसके फलस्वरुप आप श्री राम के यंत्र बन गये थे । वे अपने लिए कभी कुछ भी नहीं मांगते थे । वे तो दूसरों के दुख र्दद मिटाने के लिए देवद्वार में प्रार्थना करते थे । श्री प्रेम जी माहाराज सेवा और विनम्र भाव की जीरित मूर्ति थे। जब परम पूज्य श्री स्वामी जी महाराज के उत्तराधिकारी के रूप में श्री प्रेम जी माहाराज को पगड़ी बांधी गई और तिलक दिया गया तो एक साधक ने उन्हें दण्ड़वत नमस्कार किया । श्री प्रेम जी माहाराज तुरंत बोले! “पगड़ी बांधने से प्रेम कोई और हो गया है?” उस समय उन्होंने भक्ति प्रकाश ग्रंथ से एक शलोक उच्चारण कियाः- ”सदा रहे सेवा विनय, मान बड़ाई त्याग । राम नाम का काज हो, राम भक्ति अनुराग”।
जीवन भर परम पूज्य श्री स्वामी जी महाराज की इस पावन वाणी की उन्होनें निभाया । उन्होंने कभी भी अपने आपको बड़ा नहीं माना । उल्टा अपने बारे में यही कहा कि ”मैं तो किसी योग्य भी नहीं था पता नहीं महाराज को कैसे भ गया” । श्री प्रेम जी माहाराज बहुत कम बोलते थे । उन्होंने बहुत तप जप करके अपने जीवन को निखारा । उन्होंने जीवन भर शरणागतों की तन,मन,धन से और प्रार्थना के बल से सबकी सेवा ही की । बदले में किसी से भी उन्होंने कभी कुछ नहीं लिया था । श्री प्रेम जी माहाराज ने उन्नीस वर्ष की आयु में गर्वमैंट कालेज आॅफ एग्रीकल्चर, लायलपुर (पाक्स्तिान) से बी.एस.सी. की डिग्री प्राप्त की । तत्पश्चात जड़ाँवाला-लायलपुर और मिंटगुमरी में गर्वमैंट सर्विस की । पाक्स्तिान बन जाने के पश्चात श्री प्रेम जी माहाराज रोहतक और हीरा कुंड डैम में सर्विस में रहे । आखिर में इरीगेशन और पावर मिन्सट्री देहली में सर्विस में रहे और वहाँ से 1978 को रिटायर हुए । श्री प्रेम जी महाराज ऋृद्धियों सिद्धियों के स्वामी थे । जीवन भर उन्होनें अपने आपको छुपा कर ही रखा । ना तो उन्होंने अपना नाम बदला और ना ही लिबास बदला । उनकी ऋद्धि सिद्धि का ठाीक प्राकर से वर्णण करना आसान नहीं । नागराज का उनके सीस पर कभी कभी पहरा आ जाता था । जहरीले साँप के जहर को उतारने की सिद्धि उन्हें प्राप्त थी । पागल कुत्ते के काटने का जहर उतारना जानते थे । हिंसक जीव उनके आगे हिंसा त्याग देते थे। उनके हाथ को शफा प्राप्त थी । भयंकर दर्द से करहाने वाले के शरीर पर हाथ फेर कर उसका दर्द दूर कर देते थे। आपने 29 जुलाई 1993 सायं 7ः30 बजे राम जपते हुए ब्रहम समाधि प्राप्त की । ऐसे पूर्ण संत श्री राम कृपा से कभी कभी ही धरती पर पधारा करते हैं ।