श्री नरकेवल बेदी जी महाराज की जीवनी
संतसंत श्री अश्वनी बेदी जी ने सभा में उपस्थित श्रद्धालुयों को संत श्री नरकेवल बेदी जी महाराज की जीवनी के बारे में अपने संम्बोधन में कहा की संत श्री नरकेवल बेदी जी महाराज का जन्म 3 अगस्त 1930 को पंजाब में बसे शहर होशियारपुर में हुआ । अपनी उच शिक्षा प्राप्त करने उपरांत माता पिता द्वारा दिये उच संस्कारों के प्रभाव से जहाँ धार्मिक वृत्ति जागृत हुई वही देश भक्ति की सेवा का जोश उमड़ आया व देश सेवा हेतु विभिन्न संस्थाओं से जुड़ कर देश की सेवा के लिए लोगो में जोश भरने लगे ।
1954 में परमेश्वर कृपा से इन्हें पूर्ण गुरु के रूप में पूज्य श्री स्वामी सत्यानंद जी महाराज की शरण प्राप्त हुई । गुरु देव से नाम दीक्षा लेकर गुरु देव को लिखित रूप में वचन दिया कि जीवन भर राम नाम का प्रचार करता रहूँगा । उसी दिन से इन्होंने राम नाम को जीवन का अंग बना लिया व नाम सिमरन द्वारा आगे बढ़ने लगे। गुरु देव से आज्ञा लेकर लुधियाना मे अपने निवास पर दिसम्बर 1954 में 7 दिवसीय राम नाम अखंड जप महायज्ञ शुरु किया जिसकी समापन आरती 1959 तक गुरु देव ने स्वयं उतारी । आज यह यज्ञ 21 दिन रात्रि निरंतर चलता है । जिसमें हजारों साधक सम्मिलित होकर नाम रूपी गंगा में स्नान करके जीवन का सच्चा सुख प्राप्त कर रहें हैं ।
संत श्री अश्वनी बेदी जी ने कहा संत नरकेवल बेदी जी महाराज अपने प्रवचनों में जहां राम नाम की महिमा का वर्णन करते, वही माता पिता की सेवा पर बल देते । वह यही कहते मंदिर में हम भगवान की मृर्ति को भोग लगाते है मगर घर में भगवान की जीती जागती दो मुर्तियों को वृद्ध आश्रम भेज रहें है ।
ऐसे लोग कभी उसकी कृपा प्राप्त नही कर सकते । संत नरकेवल बेदी जी महाराज ने पूज्य श्री प्रेम जी महाराज के साथ विभिन्न राज्यों में जाकर अनेक वर्षों तक राम नाम का प्रचार किया । पंजाब पुलिस के आई जी डी आर भटीं के आग्रह पर फील्ड में पुलिस जवानों को देश की सेवा के लिए प्रेरित किया व पूना में भारतीय सेना को अपने प्रवचनों में देश की सुरक्षा हेतु जोश भरा । वह अपने कर्तव्य पालन भगवान की पूजा समझ कर करने के लिए कहा करते थे।
संत अश्वनी बेदी जी महाराज ने अपने संबोधन में कहा कि देव श्री राम कृपा से ही हमें पूर्ण संत गुरु का मिलाप होता है । संत नरकेवल बेदी जी महाराज का जीवन गुरु व श्री राम को सर्मपित रहा उन्होंने सदा ही राम नाम के गुण-गाण किए । श्री स्वामी सत्यानंद जी महाराज से नाम दीक्षा लेकर संत बेदी जी श्री राम कार्य को अर्पित रहे । उनमें जितनी श्रद्धा भक्ति अपने ईष्ट के लिए रही उतनी बराबर अपने गुरु के लिए बनी रही । अपने आप को सदा श्री राम का दास ही कहा । संत बेदी जी कहा करते की अपने माता पिता की सेवा ही भगवान का पूजन है, जो घर में बैठे हुए जीवत जागुत अपने माता पिता की भक्ति नहीं कर सकता वो न दिखाई देने वाले ईश्वर की भक्ति कैसे कर पावेगा ।
संत बेदी जी कहा करते अपना रहना सहना नियम में रखो, मर्यदा का पालन करो। वाणी विनम्र रखो, पर निंदा न करो, अभीमान न करो । जितना बन सके अधिक से अधिक नाम का जाप करो, सेवा करो, परहीत परोपकार करो । राम नाम का गुण गाण करो । जितना अधिक जप होगा, उतना ही अधिक आत्मा निर्मल होगा । जप बड़ी भावना के साथ करना चाहिये । इससे संस्कारों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा । साधक स्वयं अनुभव करेगा । जब स्वयं अजपा जाप चलेगा, वाणी से नहीं, जीभ से नहीं, स्वयं मानसिक जाप होता जायेगा, तब अविद्या की ग्रन्थी टूट जायेगी और दशम-द्वार से पार हो जायेगा । मानो साधक का परम-कल्याण हो जाता है ।
(रमणीक बेदी जी)
सन्त नरकेवल बेदी जी महाराज ने ग्रेजुएशन गवर्नमेंट कॉलेज लुधियाना से की । अपने कॉलेज के दिनों में डा. राम मनोहर लोहिया व जय प्रकाश नारायण की राजनीतिक सोशलिष्ट पार्टी में स्टूडेंट्स फॉर्म के जनरल सेक्टरी रहे । जब पहली बार पूज्य श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज से भेंट हुई तो स्वामी जी महाराज ने सन्त बेदी जी से उन के पूरे जीवन के बारे में सुना । तब श्री स्वामी जी महाराज ने सन्त बेदी जी से कहा कि तुम मेरे साथ पिछले चार जन्मों से चले आ रहे हो, यह तुम्हारा जीवन राजनीति के लिए नहीं बल्कि श्री राम कार्य को करने के लिए है ।
पूज्य संत बेदी जी ने अपने आप को गुरु चरणों में समर्पित कर दिया , तब श्री स्वामी जी महाराज ने कहा लिख कर दो कि मैं जीवन भर स्वयं राम नाम जपता रहूँगा और अंतिम साँस तक सत्संगों की सेवा, दूसरों को राम नाम जपने की प्रेरणा देता रहूँगा । यह शपथ पत्र पूज्य श्री स्वामी जी ने लिखवाया और कहा नीचे अपने हस्ताक्षर कर दो , पूज्य पिता ने आज्ञा का पालन किया और पूज्य श्री स्वामी जी ने वो पत्र अपनी लोहे की ट्रंकी में रख लिया ।
पंजाब पुलिस के आई जी डी आर भटीं के आग्रह पर फील्ड में पुलिस जवानों को देश की सेवा के लिए प्रेरित किया । इण्डियन आर्मी में पूज्य संत बेदी जी ने अपनी सेवाएँ दी जिस से भारतीय फ़ौज से प्रशस्ति पत्र और मेडल भी मिला ।
संत बेदी जी कहा करते अपना रहना सहना नियम में रखो, मर्यदा का पालन करो। वाणी विनम्र रखो, पर निंदा न करो, अभीमान न करो । जितना बन सके अधिक से अधिक नाम का जाप करो, सेवा करो, परहीत परोपकार करो । राम नाम का गुण गाण करो । जितना अधिक जप होगा, उतना ही अधिक आत्मा निर्मल होगा । जप बड़ी भावना के साथ करना चाहिये । इससे संस्कारों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा । साधक स्वयं अनुभव करेगा । जब स्वयं अजपा जाप चलेगा, वाणी से नहीं, जीभ से नहीं, स्वयं मानसिक जाप होता जायेगा, तब अविद्या की ग्रन्थी टूट जायेगी और दशम-द्वार से पार हो जायेगा । मानो साधक का परम-कल्याण हो जाता है ।