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अमृतवाणी

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अमृतवाणी

रचयिता-'श्री स्वामी सत्यानंद जी महाराज'

सर्वशक्तिमते परमात्मने श्री रामाय नम: (७)

(नमस्कार सप्तक)

करता हूं मैं वन्दना, नत शिर बारम्बार ।
तुझे देव परमात्मन्, मंगल शिव शुभकार ।। १ ।।
अंजलि पर मस्तक किये, विनय भक्ति के साथ ।
नमस्कार मेरा तुझे, होवे जग के नाथ ।। २ ।।
दोनों कर को जोड़ कर, मस्तक घुटने टेक ।
तुझ को हो प्रणाम मम, शत शत कोटि अनेक ।। ३ ।।
पाप-हरण मंगल-करण, चरण शरण का ध्यान ।
धार करूँ प्रणाम मैं, तुझ को शक्ति-निधान ।। ४ ।।
भक्ति-भाव शुभ-भावना, मन में भर भरपूर ।
श्रद्धा से तुझ को नमूँ, मेरे राम हजूर ।। ५ ।।
ज्योतिर्मय जगदीश हे, तेजोमय अपार ।
परम पुरुष पावन परम, तुझ को हो नमस्कार ।। ६ ।।
सत्यज्ञान आनन्द के, परम धाम श्री राम ।
पुलकित हो मेरा तुझे होवे बहु प्रणाम ।। ७ ।।

(प्रात: पाठ)

परमात्मा श्री राम परम सत्य, प्रकाश रूप,
परम ज्ञानानन्दस्वरूप, सर्वशक्तिमान्,
एकैवाद्वितीय परमेश्वर, परम पुरुष,
दयालु देवाधिदेव है, उसको बार-बार
नमस्कार, नमस्कार, नमस्कार, नमस्कार ।।

(अमृत वाणी)

रामामृत पद पावन वाणी,
राम नाम धुन सुधा समानी ।
पावन पाठ राम गुण ग्राम,
राम राम जप राम ही राम ।।१ ।।
परम सत्य परम विज्ञान,
ज्योति-स्वरूप राम भगवान् ।
परमानन्द, सर्वशक्तिमान्,
राम परम है राम महान् ।।२ ।।
अमृत वाणी नाम उच्चारण,
राम राम सुखसिद्धि-कारण ।
अमृत-वाणी अमृत श्री नाम,
राम राम मुद मंगल-धाम ।।३ ।।
अमृतरूप राम-गुण गान,
अमृत-कथन राम व्याख्यान ।
अमृत-वचन राम की चर्चा,
सुधा सम गीत राम की अर्चा ।।४ ।।
अमृत मनन राम का जाप,
राम राम प्रभु राम अलाप ।
अमृत चिन्तन राम का ध्यान,
राम शब्द में शुचि समाधान ।।५ ।।
अमृत रसना वही कहावे,
राम राम जहाँ नाम सुहावे ।
अमृत कर्म नाम कमाई,
राम राम परम सुखदाई ।।६ ।।
अमृत राम नाम जो ही ध्यावे,
अमृत पद सो ही जन पावे ।
राम नाम अमृत-रस सार,
देता परम आनन्द अपार ।।७ ।।

राम राम जप हे मना,
अमृत वाणी मान ।
राम नाम में राम को,
सदा विराजित जान ।।८ ।।

राम नाम मुद मंगलकारी,
विध्न हरे सब पातक हारी ।
राम नाम शुभ शकुन महान्,
स्वस्ति शान्ति शिवकर कल्याण ।।९ ।।
राम राम श्री राम विचार,
मानिए उत्तम मंगलाचार ।
राम राम मन मुख से गाना,
मानो मधुर मनोरथ पाना ।।१० ।।
राम नाम जो जन मन लावे,
उस में शुभ सभी बस जावे ।
जहां हो राम नाम धुन-नाद,
भागें वहां से विषम विषाद ।।११ ।।
राम नाम मन-तप्त बुझावे,
सुधा रस सींच शांति ले आवे ।
राम राम जपिए कर भाव,
सुविधा सुविधि बने बनाव ।।१२ ।।

राम नाम सिमरो सदा,
अतिशय मंगल मूल ।
विषम-विकट संकट हरण,
कारक सब अनुकूल ।।१३ ।।

जपना राम राम है सुकृत,
राम नाम है नाशक दुष्कृत ।
सिमरे राम राम ही जो जन,
उसका हो शुचितर तन मन ।।१४ ।।
जिसमें राम नाम शुभ जागे,
उस के पाप ताप सब भागे ।
मन से राम नाम जो उच्चारे,
उस के भागें भ्रम भय सारे ।।१५ ।।
जिस में बस जाय राम सुनाम,
होवे वह जन पूर्णकाम ।
चित्त में राम राम जो सिमरे,
निश्चय भव सागर से तरे ।।१६ ।।
राम सिमरन होवे सहाई,
राम सिमरन है सुखदाई ।
राम सिमरन सब से ऊंचा,
राम शक्ति सुख ज्ञान समूचा ।।१७ ।।

राम राम ही सिमर मन,
राम राम श्री राम ।
राम राम श्री राम भज,
राम राम हरि-नाम ।।१८ ।।

मात-पिता बान्धव सुत दारा,
धन जन साजन सखा प्यारा ।
अन्त काल दे सके न सहारा,
राम नाम तेरा तारन हारा ।।१९ ।।
सिमरन राम नाम है संगी,
सखा स्नेही सुहृद् शुभ अंगी ।
युग युग का है राम सहेला,
राम भक्त नहीं रहे अकेला ।।२० ।।
निर्जन वन विपद् हो घोर,
निबड़ निशा तम सब ओर ।
जोत जब राम नाम की जगे,
संकट सर्व सहज से भगे ।।२१ ।।
बाधा बड़ी विषम जब आवे,
वैर विरोध विघ्न बढ़ जावे ।
राम नाम जपिए सुख दाता,
सच्चा साथी जो हितकर त्राता ।।२२ ।
मन जब धैय्र्य को नहीं पावे,
कुचिन्ता चित्त को चूर बनावे ।
राम नाम जपे चिन्ता चूरक,
चिन्तामणि चित्त चिन्तन पूरक ।।२३ ।।
शोक सागर हो उमड़ा आता,
अति दुःख में मन घबराता ।
भजिए राम राम बहु बार,
जन का करता बेड़ा पार ।।२४ ।।
कड़ी घड़ी कठिनतर काल,
कष्ट कठोर हो क्लेश कराल ।
राम राम जपिए प्रतिपाल,
सुख दाता प्रभु दीनदयाल ।।२५ ।।
घटना घोर घटे जिस बेर,
दुर्जन दुखड़े लेवें घेर ।
जपिए राम नाम बिन देर,
रखिए राम राम शुभ टेर ।।२६ ।।
राम नाम हो सदा सहायक,
राम नाम सर्व सुखदायक ।
राम राम प्रभु राम का टेक,
शरण शान्ति आश्रय है एक ।।२७ ।।
पूंजी राम नाम की पाइये,
पाथेय साथ नाम ले जाइये ।
नाशे जन्म मरण का खटका,
रहे राम भक्त नहीं अटका ।।२८ ।।

राम राम श्री राम है,
तीन लोक का नाथ ।
परम पुरुष पावन प्रभु,
सदा का संगी साथ ।।२९ ।।

यज्ञ तप ध्यान योग ही त्याग,
बन कुटी वास अति वैराग ।
राम नाम बिना नीरस फोक,
राम राम जप तरिए लोक ।।३० ।।
राम जाप सब संयम साधन,
राम जाप है कर्म आराधन ।
राम जाप है परम अभ्यास,
सिमरो राम नाम 'सुख-रास' ।।३१ ।।
राम जाप कही ऊँची करणी,
बाधा विध्न बहु दुःख हरणी ।
राम राम महा-मन्त्र जपना,
है सुव्रत नेम तप तपना ।।३२ ।।
राम जाप है सरल समाधि,
हरे सब आधि व्याधि उपाधि ।
ऋद्धि सिद्धि और नव निधान,
दाता राम है सब सुख खान ।।३३ ।
राम राम चिन्तन सुविचार,
राम राम जप निश्चय धार ।
राम राम श्री राम ध्याना,
है परम पद अमृत पाना ।।३४ ।।

राम राम श्री राम हरि,
सहज परम है योग ।
राम राम श्री राम जप,
दाता अमृत भोग ।।३५ ।।

नाम चिन्तामणि रत्न अमोल,
राम नाम महिमा अनमोल ।
अतुल प्रभाव अति प्रताप,
राम नाम कहा तारक जाप ।।३६ ।।
बीज अक्षर महा-शक्ति-कोष,
राम राम जप शुभ सन्तोष ।
राम राम श्री राम राम मंत्र,
तन्त्र बीज परात् पर यन्त्र ।।३७ ।।
बीजाक्षर पद पद्म प्रकाशे,
राम राम जप दोष विनाशे ।
कुँडलिनी बोधे शुष्मणा खोले,
राम मंत्र अमृत रस घोले ।।३८ ।।
उपजे नाद सहज बहु भांत,
अजपा जाप भीतर हो शान्त ।
राम राम पद शक्ति जगावे,
राम राम धुन जभी रमावे ।।३९ ।।
राम नाम जब जगे अभंग,
चेतन भाव जगे सुख-संग ।
ग्रन्थी अविद्या टूटे भारी,
राम लीला की खिले फुलवारी ।।४० ।।

पतित पावन परम पाठ,
राम राम जप याग ।
सफल सिद्धि कर साधना,
राम नाम अनुराग ।।४१ ।।

तीन लोक का समझिए सार,
राम नाम सब ही सुखकार ।
राम नाम की बहुत बड़ाई,
वेद पुराण मुनि जन गाई ।।४२ ।।
यति सती साधु-संत सयाने,
राम नाम निश दिन बखाने ।
तापस योगी सिद्ध ऋषिवर,
जपते राम राम सब सुखकर ।।४३ ।।
भावना भक्ति भरे भजनीक,
भजते राम नाम रमणीक ।
भजते भक्त भाव भरपूर,
भ्रम भय भेद-भाव से दूर ।।४४ ।।
पूर्ण पंडित पुरुष प्रधान,
पावन परम पाठ ही मान ।
करते राम राम जप ध्यान,
सुनते राम अनाहद तान ।।४५ ।।
इस में सुरति सुर रमाते,
राम राम स्वर साध समाते ।
देव देवीगण दैव विधाता,
राम राम भजते गणत्राता ।।४६ ।।
राम राम सुगुणी जन गाते,
स्वर संगीत से राम रिझाते ।
कीर्तन कथा करते विद्वान,
सार सरस संग साधनवान् ।।४७ ।।

मोहक मंत्र अति मधुर,
राम राम जप ध्यान ।
होता तीनों लोक में,
राम नाम गुण गान ।।४८ ।।

मिथ्या मन-कल्पित मत-जाल,
मिथ्या है मोह कुमद बैताल ।
मिथ्या मन मुखिया मनोराज,
सच्चा है राम नाम जप काज ।।४९ ।।
मिथ्या है वाद विवाद विरोध,
मिथ्या है वैर निंदा हठ क्रोध ।
मिथ्या द्रोह दुर्गुण दुःख खान,
राम नाम जप सत्य निधान ।।५० ।।
सत्य मूलक है रचना सारी,
सर्व सत्य प्रभु राम पसारी ।
बीज से तरु मकड़ी से तार,
हुआ त्यों राम से जग विस्तार ।।५१ ।।
विश्व वृक्ष का राम है मूल,
उस को तू प्राणी कभी न भूल ।
साँस साँस से सिमर सुजान,
राम राम प्रभु राम महान् ।।५२ ।।
लय उत्पत्ति पालना रूप,
शक्ति चेतना आनंद स्वरूप ।
आदि अन्त और मध्य है राम,
अशरण शरण है राम विश्राम ।।५३ ।।

राम नाम जप भाव से,
मेरे अपने आप ।
परम पुरुष पालक प्रभु,
हर्ता पाप त्रिताप ।।५४ ।।

राम नाम बिना वृथा विहार,
धन धान्य सुख भोग पसार ।
वृथा है सब सम्पद् सम्मान,
होवे तन यथा रहित प्राण ।।५५ ।।
नाम बिना सब नीरस स्वाद,
ज्यों हो स्वर बिना राग विषाद ।
नाम बिना नहीं सजे सिंगार,
राम नाम है सब रस सार ।।५६ ।।
जगत् का जीवन जानो राम,
जग की ज्योति जाज्वल्यमान ।
राम नाम बिना मोहिनी माया,
जीवन-हीन यथा तन छाया ।।५७ ।।
सूना समझिए सब संसार,
जहां नहीं राम नाम संचार ।
सूना जानिए ज्ञान विवेक,
जिस में राम नाम नहीं एक ।।५८ ।।
सूने ग्रंथ पन्थ मत पोथे,
बने जो राम नाम बिन थोथे ।
राम नाम बिन वाद विचार,
भारी भ्रम का करे प्रचार ।।५९ ।।

राम नाम दीपक बिना,
जन-मन में अन्धेर ।
रहे, इस से हे मम मन,
नाम सुमाला फेर ।।६० ।।

राम राम भज कर श्री राम,
करिए नित्य ही उत्तम काम ।
जितने कर्तव्य कर्म कलाप,
करिए राम राम कर जाप ।।६१ ।।
करिए गमनागम के काल,
राम जाप जो करता निहाल ।
सोते जगते सब दिन याम,
जपिए राम राम अभिराम ।।६२ ।।
जपते राम नाम महा माला,
लगता नरक द्वार पै ताला ।
जपते राम राम जप पाठ,
जलते कर्मबन्ध यथा काठ ।।६३ ।।
तान जब राम नाम की टूटे,
भांडा भरा अभाग्य भय फूटे ।
मनका है राम नाम का ऐसा,
चिन्ता-मणि पारस-मणि जैसा ।।६४ ।।
राम नाम सुधा-रस सागर,
राम नाम ज्ञान गुण-आगर ।
राम नाम श्री राम महाराज,
भव-सिन्धु में है अतुल जहाज ।।६५ ।।
राम नाम सब तीर्थ स्थान,
राम राम जप परम स्नान ।
धो कर पाप-ताप सब धूल,
कर दे भय-भ्रम को उन्मूल ।।६६ ।।
राम जाप रवि-तेज समान,
महा मोह-तम हरे अज्ञान ।
राम जाप दे आनन्द महान्,
मिले उसे जिसे दे भगवान् ।।६७ ।।

राम नाम को सिमरिये,
राम राम एक तार ।
परम पाठ पावन परम,
पतित अधम दे तार ।।६८ ।।

माँगूं मैं राम-कृपा दिन रात,
राम-कृपा हरे सब उत्पात ।
राम-कृपा लेवे अन्त सम्हाल,
राम प्रभु है जन प्रतिपाल ।।६९ ।।
राम-कृपा है उच्चतर योग,
राम-कृपा है शुभ संयोग ।
राम-कृपा सब साधन-मर्म,
राम-कृपा संयम सत्य धर्म ।।७० ।।
राम नाम को मन में बसाना,
सुपथ राम-कृपा का है पाना ।
मन में राम-धुन जब फिरे,
राम-कृपा तब ही अवतरे ।।७१ ।।
रहूँ, मैं नाम में हो कर लीन,
जैसे जल में हो मीन अदीन ।
राम-कृपा भरपूर मैं पाऊँ,
परम प्रभु को भीतर लाऊँ ।।७२ ।।
भक्ति-भाव से भक्त सुजान,
भजते राम-कृपा का निधान ।
राम-कृपा उस जन में आवे,
जिस में आप ही राम बसावे ।।७३ ।।
कृपा-प्रसाद है राम की देनी,
काल-व्याल जंजाल हर लेनी ।
कृपा-प्रसाद सुधा-सुख-स्वाद,
राम नाम दे रहित विवाद ।।७४ ।।
प्रभु-प्रसाद शिव शान्ति दाता,
ब्रह्म-धाम में आप पहुँचाता ।
प्रभु-प्रसाद पावे वह प्राणी,
राम राम जपे अमृत वाणी ।।७५ ।।
औषध राम नाम की खाइये,
मृत्यु जन्म के रोग मिटाइये ।
राम नाम अमृत रस-पान,
देता अमल अचल निर्वाण ।।७६ ।।

राम राम धुन गूँज से,
भव भय जाते भाग ।
राम नाम धुन ध्यान से,
सब शुभ जाते जाग ।।७७ ।।

माँगूं मैं राम नाम महादान,

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